DNA ANALYSIS: इरफान खान ने जीवन की प्रयोगशाला में दिया अमर होने का 'फॉर्मूला'
आप इरफान खान के जीवन को करीब से देखेंगे तो समझेंगे कि उन्होंने अपनी किस्मत खुद लिखी थी. ऐसे लोग कभी मरते नहीं, ऐसे लोग हमेशा जीवित रहते हैं. उन्हें उनका शानदार काम अमर बना देता है.
आपको याद होगा कि कल हम जीवन और मृत्यु की बात कर रहे थे और आज हमें एक बार फिर इस चर्चा को छेड़ना होगा. आज हिंदी फिल्मों के मशहूर अभिनेता इरफान खान की 53 वर्ष की उम्र में मौत हो गई है लेकिन आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि उनकी मृत्यु आखिर क्या है? ये नियति है या फिर उनके शरीर में आई एक तकनीकी खामी? क्या इरफान खान के जन्म के साथ ही उनकी मृत्यु की तारीख तय हो गई थी या फिर एक बीमारी ने उनके सफर को समय से पहले रोक दिया?
इरफान खान के शरीर में आई इस तकनीकी खामी यानी बीमारी का नाम एंडोक्राइन ट्यूमर (Endo-Crine Tumour) था. यह एक दुर्लभ बीमारी है. एक लाख लोगों में किसी एक में यह बीमारी होने का खतरा होता है. यानी इस बीमारी से मरने के लिए आपको बहुत दुर्भाग्यशाली होना पड़ेगा. आप इरफान खान के जीवन को करीब से देखेंगे तो समझेंगे कि उन्होंने अपनी किस्मत खुद लिखी थी. ऐसे लोग कभी मरते नहीं, ऐसे लोग हमेशा जीवित रहते हैं. उन्हें उनका शानदार काम अमर बना देता है. कल हमने आपसे अमरता का भी जिक्र किया था. विज्ञान की प्रयोगशालाओं में इंसान कब अमर होगा, ये तो कहा नहीं जा सकता लेकिन जीवन की प्रयोगशाला में अमर होने का एक तरीका हमें इरफान ने सिखाया है और वो तरीका ये है कि आप जीवन को एक रंग मंच बना लें और रंगमंच को जीवन की तरह स्वीकार कर लें.
आध्यात्मिक गुरु ओशो ने एक बार कहा था कि किसी व्यक्ति को अपना जीवन ऐसे जीना चाहिए जैसे वो अभिनय कर रहा हो और एक अभिनेता को अभिनय ऐसे करना चाहिए जैसे वो जीवन जी रहा हो. इरफान खान ठीक ऐसा ही करके हमारे बीच से गए हैं. वो अभिनय की बारिकियां तो जानते ही थे लेकिन जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. आज इरफान की मृत्यु ने हमारा ध्यान एक और सत्य की तरफ खींचा है और वो सत्य ये है कि कोरोना वायरस की महामारी के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा. ना तो जीवन पहले जैसा होगा और ना ही मृत्यु की प्रथाएं पहले की तरह निभाई जाएंगी.
आज इरफान खान के अंतिम संस्कार में सिर्फ 12 लोग शामिल हुए. कहा जाता है कि आपने जीवन में क्या कमाई की है? इसका पता आपके अंतिम संस्कार और जनाजे में आने वाले लोगों की संख्या देखकर लगता है लेकिन अभिनय की असीम पूंजी हासिल करने वाले इरफान खान के जनाजे में सिर्फ 12 लोग आ पाए. लाखों लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर ही श्रद्धांजलि दी. सोशल मीडिया पर इरफान खान को श्रद्धांजलि देने वालों में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर आम लोग तक शामिल थे.
दिनभर सोशल मीडिया पर ट्रेंड होते रहे इरफान खान
इरफान खान दिनभर सोशल मीडिया पर ट्रेंड होते रहे और अब भी हो रहे हैं लेकिन उनकी अंतिम यात्रा में भीड़ नहीं थी. ये अजीब विडंबना है कि सिर्फ 4 दिन पहले ही उनकी मां का भी देहांत हो गया था और वो लॉकडाउन की वजह से अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे. उन्होंने मोबाइल फोन पर ही अपनी मां का अंतिम संस्कार होते हुए देखा था.
इरफान खान दिनभर सोशल मीडिया पर ट्रेंड होते रहे और अब भी हो रहे हैं लेकिन उनकी अंतिम यात्रा में भीड़ नहीं थी. ये अजीब विडंबना है कि सिर्फ 4 दिन पहले ही उनकी मां का भी देहांत हो गया था और वो लॉकडाउन की वजह से अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे. उन्होंने मोबाइल फोन पर ही अपनी मां का अंतिम संस्कार होते हुए देखा था.
मृत्यु से पहले इरफान खान के आखिरी शब्द थे - 'अम्मी मुझे लेने आ गई हैं.' यानी यही उनकी रियल लाइफ का आखिर डायलॉग था. मृत्यु उम्र नहीं देखती, मृत्यु के आगे कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, मृत्यु के लिए सभी धर्मों और जातियों में पैदा हुए लोग एक समान होते हैं. मृत्यु मां को अपने पुत्र से अलग कर सकती है तो एक पुत्र को भी मां के जाने का सदमा दे सकती है.
वैसे तो किसी कलाकार का कोई धर्म नहीं होता लेकिन इरफान खान जन्म से मुसलमान थे और वो सभी धर्मों में छिपी आध्यात्मिकता को समझने का प्रयास करते थे. इरफान खान कहते थे कि आप अपनी आत्मा को सिर्फ अपने कर्म से ही निखार सकते हैं. यानी जो काम आप कर रहे हैं उसके प्रति बरती गई ईमानदारी ही आपको असली मोक्ष दिला सकती है. इरफान खान मौलिक अभेनिता थे. यानी उन्होंने कभी किसी की नकल नहीं की. यानी आपकी मौलिकता भी आपको अमर बना सकती है और मौलिकता के साथ जीवन जीने वाले का मृत्यु भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
कट्टरपंथियो को नापसंद करते थे इरफान
इरफान खान के व्यक्तित्व से जुड़ी एक अहम बात ये थी कि वो खुले विचारों के थे, कट्टरपंथियो को नापसंद करते थे, और रुढ़िवादी सोच से हटने की बातें करते थे. यहां तक कि उन्होंने कई बार ऐसे रोल करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें उन्हें लगता था कि वो रोल उनकी छवि को कट्टरवादी या धार्मिक व्यक्ति के तौर पर पेश करता है. इरफान का पूरा नाम साहबजादे इरफान अली खान है, लेकिन उन्होंने शुरुआत में ही अपने नाम से साहेबजादा शब्द हटा दिया था और सिर्फ इरफान खान लिखते थे. बाद में उन्होंने अपने नाम से खान सरनेम भी हटा दिया था और अपना नाम सिर्फ इरफान लिखते थे. इरफान ने कुछ वर्षों पहले मुस्लिम कट्टरपंथियों को नाराज कर दिया था, जब उन्होंने बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी की प्रथा पर सवाल उठाए थे. इरफान पूर्ण शाकाहारी थे, इस पर उनके पिता यहां तक कहते थे कि पठान परिवार में ब्राह्मण का जन्म हो गया है.
इरफान खान के व्यक्तित्व से जुड़ी एक अहम बात ये थी कि वो खुले विचारों के थे, कट्टरपंथियो को नापसंद करते थे, और रुढ़िवादी सोच से हटने की बातें करते थे. यहां तक कि उन्होंने कई बार ऐसे रोल करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें उन्हें लगता था कि वो रोल उनकी छवि को कट्टरवादी या धार्मिक व्यक्ति के तौर पर पेश करता है. इरफान का पूरा नाम साहबजादे इरफान अली खान है, लेकिन उन्होंने शुरुआत में ही अपने नाम से साहेबजादा शब्द हटा दिया था और सिर्फ इरफान खान लिखते थे. बाद में उन्होंने अपने नाम से खान सरनेम भी हटा दिया था और अपना नाम सिर्फ इरफान लिखते थे. इरफान ने कुछ वर्षों पहले मुस्लिम कट्टरपंथियों को नाराज कर दिया था, जब उन्होंने बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी की प्रथा पर सवाल उठाए थे. इरफान पूर्ण शाकाहारी थे, इस पर उनके पिता यहां तक कहते थे कि पठान परिवार में ब्राह्मण का जन्म हो गया है.
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